प्रोग्रामिंग विकाश चक्र - Programming Development Cycle

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प्रोग्रामिंग विकाश चक्र - Programming Development Cycle


Programming Development Cycle in Hindi

प्रोग्रामिंग विकाश चक्र सॉफ्टवेयर विकसित करने का एक व्यवस्थित तरीका है। यह एक बहुचरण (Multiple stages) प्रक्रिया है, किसी भी Application को बनाने के लिए हमे कई चरणो को पार करना होता है,जिसमे किसी की पहचान करके उसके समाघान के लिए एक Computer Program का निर्माण करना ।
 किसी भी program को लिखने मे नीचे दी गई 6 गतिविधियो को शामिल किया जाता है-

  1. Analysis Program Specification
  2. Designing a Program Model
  3. Determining Correctness of the Program
  4. Coding
  5. Testing and Debugging
  6. Documentation
(1) प्रोग्राम की बारीकियों का विश्लेषण ( Analysis Program Specification)

किसी प्रोग्राम की बारीकियों को समझने मे दो मुख्य गतिविधियाँ होती है-


(I) समस्या को परिभाषित करना (Defining the Problem) - किसी प्रोग्राम के विकास की प्रक्रिया में पहला कदम उस समस्या की गहन समझ और पहचान है, जिसके लिए हम प्रोग्राम या सॉफ्टवेयर विकसित करना चाहते है। Program model को Design करने से पहले हमे,वह प्रोग्रम जिस समस्या का समाधान करेगा उसका एक statement तैयार करना है ।

(II) आवश्यकता विश्लेषण (Requirements Analysis) – आवश्यकताओं का पर्याप्त रुप से निर्धारण प्रोग्राम की सफलता की कुँजी है। किसी प्रोग्राम का आवश्यकताओं  के विश्लेषण के लिए तीन समान्य प्रश्नो का उत्तर पता होना चाहिए। (1) Input के रुप मे क्या दिया जाता है? (2) Output  के रुप मे मे क्या प्राप्त होता है? (3) समाधान तक कैसे पहुँचा जाय?

(2) प्रोग्रम मॉडल डिजाइन करना (Designing a Program Model)

Problem Define होने के बाद अगला चरण प्रोग्राम मॉडल डिज़ाइन है। सॉफ्टवेयर डेवलपर प्रोग्राम के डिजाइन को विकसित करने के लिए अल्गोरिद्म (Algorithms), फ्लोचार्ट (Flowchart) तथा सूडोकोड(Pseudocode) जैसे Tools का उपयोग करता है। Algorithms एक ऐसा फॉर्मुला या विधि है,जिसका प्रयोग समास्य के समाधान की प्राप्ति के लिए किया जाता है तथा Flowchart समाधान का दृश्य (visual) और ग्राफिक्स निरूपण (Graphics Formulation) फ्रदान करते है, जबकि सूडोकोड का अर्थ सामान्य अंग्रेजी भाषा मे Program Logic को लिखना होता है।


(3) प्रोग्राम की शुद्धता का निर्धारण (Determining Correctness of the Program )

प्रोग्राम या अल्गोरिद्म बनाते समय, कभी-कभी सबसे कठीन और थकाऊ चरण यह सुनिश्चित करना होता है कि प्रोग्राम या अल्गोरिद्म मे कोई त्रुटी तो नही है। किसी प्रोग्राम या अल्गोरिद्म की शुद्धता का अर्थ है यह है की वह सही output दे तथा वह वही करे जिसके लिए उसे बनाया गया है। किसी प्रोग्राम या अल्गोरिद्म की शुद्धता की जाँच के लिए Dry run, Independent inspection, Structured walkthrough मे से किसी भी विधि का प्रयोग किया जा सकता है।

(4)  कोडिंग (Coding)

एक बार जब डिजाइन प्रक्रिया पूरी हो जाती है, तो वास्तविक कंप्यूटर प्रोग्राम लिखा जाता है,यानि यह हमारी समस्या के समाधान को वास्तविक कंप्यूटर प्रोग्राम मे बदलने कि प्रक्रिया है। कोडिंग  के लिए हम एक प्रोग्रामिंग भाषा का चयन करते है, तथा भाषा के सिन्टैक्स तथा सिमैन्टिक्स का प्रयोग करते हुए Algorithms को Programming Code मे परिवर्तित करते है।

(5) प्रोग्राम की जाँच करना तथा त्रुटि को हटाना (Testing and Debugging)

Testing
एक बार कोडिंग पूरी हो जाने के बाद Program को Compiler द्वारा कम्पाइल किया जाता है, कम्पाइलर Program source code को मशीन कोड मे परिवर्तित करता है । कम्पाइलेशन  की प्रक्रिया के पूरा हो जाने पर यदि प्रोग्राम मे कोई error है तो उसे दिखाया जाता है।  प्रोग्राम मे आये इन error को ठीक करके फिर से कम्पाइल करने की प्रक्रिया को Testing कहते है। यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है,जब तक की प्रोग्राम त्रुटिहीन (Errorless) न हो जाये। किसी भी प्रोग्राम मे समान्यतः 3 प्रकार के error आते है-
  1. Syntax Error  -  Syntax Error  तब आता है जब प्रोग्रामर किसी सिन्टैक्स को गलत लिख देता है या कॉमा,सेमिकॉलन इत्यादि छुट जाते है,जिसके कारण कम्पाइलर लिखे गये command को नही समक्ष पाता है तथा प्रोग्राम को Reject कर देता है और एक Error show करता है।
  2. Execution Error – इस प्रकार के Error का पता Program को execute करने के बाद चलता है,इसलिए इन्हे Run Time Error भी कहा जाता है।
  3. Logical Error  - इस प्रकार के Error प्रोग्रामर द्वारा की गई गलत कोडिंग या गलत Logic से उत्पन्न होती है।

Debugging
 किसी एरर के मूल कारण को पहचान कर उसे ठीक करते की प्रक्रिया को Debugging कहते है। यह प्रक्रिया Testing के ठीक विपरीत होती है।

(6) दस्तावेजीकरण ( Documentation )

प्रोग्राम के एक बार लिख जाने और डिबग कर लिए जाने के बाद यह कार्य करने के लिए तैयार होता है और इसलिए इसे अब लिखित प्रोसीजर की आवश्यकता होती है जिसमें प्रोग्राम कैसे चलाया जाए डाटा प्रविष्ट किस प्रकार किया जाए तथा इसमे किस तरह की समस्याएं आ सकती हैं और उन्हें किस प्रकार हैंडल किया जाए आदि के उत्तर दिए गए होते हैं। किसी प्रोग्राम के Documentation में फ्लोचार्ट, सूडोकोड, प्रोग्राम की सूची तथा एल्गोरिथ्म और प्रक्रियाओं का विस्तृत लिखित विवरण (Detailed written description of procedures) सम्मिलित होता है। किसी प्रोग्राम के रखरखाव के लिए दस्तावेजीकरण जरुरी होता है। सही Documentation नही होने पर प्रोग्राम में बदलाव कर पाना अत्यंत कठिन होता है।

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